बिपाशा नदी के तट पर अमात्य राक्षस अपने शिविर से बाहर निकला ही था कि नन्द के सैनिक उसे बंदी बनाने के लिए बहा आ पहुंचे। जैसे ही उन्होंने राक्षस को बंदी बनाने की कोशिश की एक स्वर उनके कानों से टकराया - ठहरो, राक्षस को बंदी बनाने से पहले तुम्हारे प्रतिरोध में हम भी खड़े है। कौन हो तुम लोग ? आचार्य चाणक्य द्वारा भेजे गए आपका जीवन रक्षक उन्होंने आपके लिए पत्र भी भेजा है !
राक्षस ने पत्र को पढ़ा तो उसने लिखा था अलका का सिंहरण से विवाह हो रहा है उसमें आचार्य ने राक्षस को आमंत्रित किया था। क्या प्रखर प्रतिभा हे आचार्य की। वह मुस्कुराया चाणक्य के सैनिकों ने नंद के सैनिकों को बंदी बनाकर बंदी गृह में भेज दिया। राक्षस चाणक्य की और चल दिया मार्ग में ही मालव के एक सेनापति ने राक्षस को सूचना दी कि सिकंदर ने मलबा के पास संधि प्रस्ताव भेजा है। राक्षस को इस बात का भी अनुमान हो चुका था कि चाणक्य वास्तव में मगध हितैषी है।
राक्षस ने अपनी उंगली से राजचिन्ह रूपी मुद्रिका निकाल कर आचार्य के सामने रख दी। आचार्य चाणक्य को अपने लक्ष्य में एक और सफलता मिल गई। वह उस मुद्रिका का सुदुपयोग कर सकते थे। रावी नदी के तट पर सिकंदर की वापसी के लिए बहुत बड़ा उत्सव पर्वतेश्वर मना रहे थेअलका और सिंहरण का विवाह भी हो चुका था। अलका अपनी चालाकी से सिंहरण को बंदीगृह से आजाद करने में सफल हो चुकी थी। यह पर्वतेश्वर के लिए अपमान की बात थी। वह अपने आपको मार डालना चाहता था मगर चाणक्य ने उसे समय पर जाकर बचा लिया।
पूरू तुम कायर नहीं हो अगर होते तो आम्भीक की तरह अपनी प्रतिष्ठा गिरवी रख देते , लेकिन तुमने युद्ध करना स्वीकार किया, तुम एक वीर हो। आप मेरे लिए क्या आदेश है, पूरू ने पूछा। फिलहाल तुम सिंहरण को अपना भाई मान कर उसे विवाह की मुबारकबाद दो। उधर चंद्रगुप्त और कनैलिया के बीच भी प्रेम पनप रहा था। मौका पाकर चंद्रगुप्त ने उससे कहा- कनैलिया मैं नहीं जानता कि वो कौन सा आकर्षण था जिसने मुझे तुम्हारी तरफ आकर्षित किया। मैं आज यहां से जा रही हूं, चंद्रगुप्त। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मैं यहां दोबारा लौटकर आऊंगी कनैलिया ने मुस्कुरा कर कहा। तू मुझे भूलोगी तो नहीं, नहीं चंद्रगुप्त।
उधर चाणक्य पर्वतेश्वर के समझा रहा थे
पुरुराज ! आज मैं फिर मगध विजय के लिए तुम्हारे सेना मांगना चाहता हूं। मैं अपनी पिछली गलतियों पर बेहद शर्मिंदा हूं चाणक्य। आज मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य मानता हूं, पूरू ने कहा। तो फिर चलो आज इन यवनों को यहां से विदा करने कि हम योजना बनाते हैं। फिर सभी भारतीय सिकंदर को विदा करने के लिए चल दिया। तोभी सिकंदर ने चंद्रगुप्त से कहा बधाई हो चंद्रगुप्त। किस बात की बधाई सम्राट। यह बधाई भारत के सम्राट चंद्रगुप्त के लिए है, क्योंकि जब तुम सम्राट बनोगे तब यहां मैं नहीं रहूंगा , इसलिए पहले ही बधाई दे रहा हूं।
उसके बाद सिकंदर जाने के लिए अपनी नाव में सवार हो गया। सब उसे जाते हुए देख रहे थे।