दूसरी तरफ कुसुमपुर में व्यापारियों के वेष में एक बड़ी सेना इकट्ठी हो चुकी थी। फिलिप के पराजित कर चंद्रगुप्त भी वाह आ चुका था। धीरे-धीरे नागरिकों में विद्रोह जगाने लगा सेनापति मौर्य और शकटार को अपने देखकर प्रजा को नन्द से घृणा होने लगी थी। चंद्रगुप्त के सम्बोधित करते हुए चाणक्य ने कहा -अपने पिता के चरण स्पर्श करो बत्स। चरण स्पर्श करने के बाद चंद्रगुप्त ने अपने पिता के आसूं पौंछते हुए कहा -एक एक पीड़ा और निष्ठुरता का प्रतिकार होगा आप निश्चिंत रहे नागरिकों मैं अव यही चर्चा थी। अपने निष्ठावान मंत्रियों तथा सेनापति को अकारण बंदी बनाने वाले राजा को सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं।
सभी लोग राजभवन की और बढ़ रहे थे, जहां नंद ने राक्षस और सुवासिनी को बन्दी बना रखा था नागरिकों के विद्रोह को देख नंद घबरा गया जब उसने अपने सामने शकटार सेनापति मौर्य वररुचि वह मालविका को खरे देखा तो समझते देर नहीं लगी कि उसके खिलाफ गहरा पड् यन्त्र रचा जा रहा था तुम्हारा सिंहासन अब डोल चुका है नंद। शकटार ने चिल्ला कर कहां। नंद के सैनिक शकटार को बंदी बनाना चाहते थे, लेकिन चंद्रगुप्त के सैनिक ने नंद के पराजित कर दिया उसके माथे से मुकुट उतर कर जमीन पर गिर गया
चाणक्य ने मुकुट हाथ से उठाकर नंद के बाल पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा -मेरे हाथ में जो मगध का मुकुट है उसका उत्तराधिकारी मैं स्वयं नियुक्त करूंगा। आचार्य अव पापी को दण्ड देने का अवसर आ चुका है। नागरिक चिल्लाए तभी शकटार ने भीड़ में से निकलकर नंद की छाती में एक पैनी धार वाला छुरा घोंप दिया। पूरी प्रजा ने एकमत होकर कहा- राजा चंद्रगुप्त को बनाया जाए फिर राक्षस ने चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक कर दिया।
चाणक्य का शिखा बन्धन
आचार्य चाणक्य सिंधु नदी के तत्पर बैठे सोच रहे थे आज मैं धन्य हो गया, मेरा लगाया पौधा फूल से सज्जित होकर अपनी गन्ध फैला रहा है। तभी चंद्रगुप्त, शकटार सेनापति मौर्य व अन्य बहुत से लोग वहां आ पहुंचे राक्षस चाणक्य के कदमों में गिर गया।सेल्युकस भी वहां आ पहुंचा फिर सब मिलकर राजभवन पहुंचे। विजेता सेल्यूकस का मैं स्वागत करता हूं चंद्रगुप्त ने कहा मैं यहां संधि के लिए आया हूं वह बोला तुम दोनों के पास संधि का एक सूत्र है। चाणक्य ने कहा मैं कानैलिया को भारत की साम्राज्ञी बनाने के लिए उसका हाथ चंद्रगुप्त के लिए मांगता हूं।
यह मेरे लिए गौरव की बात है, सेल्यूकस बोला। फिर उसने अपनी बेटी का हाथ चंद्रगुप्त के हाथ में देकर दोनों को गले लगा लिया। चंद्रगुप्त और कनैलिया ने चाणक्य के चरण स्पर्श किया। चाणक्य ने दोनों को आशीर्वाद दिया अब वह पूरी तरह संतुष्ट थे अपने अपनी शिक्षा में भी बंधन बांध लिया।