रानी की स्त्री साइना में एक सैनिक झलकारी बाई थी, जो कि रानी की सखी तथा विश्वासपात्र थी। अपने प्राणों की परवाह किए बिना वह रानी का साथ दे रही थी। वह रानी के एक सेनानायक की पत्नी थी उनकी सकल रानी से मिलती-जुलती थी। वह रानी के लिए पूरी तरह समर्पित थी। उनमें देश प्रेम की भावना रानी की तरह कूट-कूट कर भरी थी। रानी ने उनकी यह भावना देखकर उन्हें घुड़सवारी तथा शस्त्र संचालन की शिक्षा देकर एक योग्य सैनिक बना दिया था। वह बिना किसी डर के युद्ध कर शक्ति थी
अंग्रेजों की सेना ने झांसी की सेना को चारों ओर से घेर लिया। दुर्ग के मुख्य द्वार के रक्षक तथा तोपखाने के रक्षक अपना कर्तव्य करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। रानी जब अंग्रेजों की सेना से घिर गई, तो उनके सलाहकारों और सहना नायकों ने उनसे निवेदन किया कि दुर्ग से बाहर ना निकल जाए, परंतु वह इसके लिए राजी नहीं थी, पर झांसी की भलाई के लिए वह इसके लिए तैयार हो गई। जब रानी को किले से सुरक्षित निकालने की योजना बनाने लगी, तब झलकारी बाई ने उनकी बड़ी सहायता की। रानी के समान ही रंग रूप की होने की वजह से वह अंग्रेजों को धोखा देने के लिए रानी के कपड़े पहनकर युद्ध करती हुई अंग्रेजों की सेना से भीड़ गई। अंग्रेज उन्हें रानी समझकर उनसे युद्ध करते रहें। काफी देर तक उन्हें उलझाए रही, इसी बीच रानी को वच निकालने का मौका मिल गया। चूंकी रानी ने दुर्ग के अंदर एक एक अंग्रेज को चुनकर मार दिया था, इसलिए अंग्रेज़ गुस्से से पागल हो गए थे।
दुर्ग के अंदर कोई अंग्रेज नहीं बचा था। इस युद्ध में महारानी की वीरता और साहस से अंग्रेज बहुत ही चकित थे। सन 1857 के विद्रोह का सेनानी तात्या टोपे अपनी सेना लेकर महारानी की सहायता के लिए पहुंच गया । अंग्रेजों की मार से तात्या की फौज घबरा गई। उनकी अनेक तोपें उनके हाथ लग गई।
झलकारी बाई के सहयोग से अपने पुत्र को पीछे पेट पर बांधकर रानी लक्ष्मी बाई एक हजार सैनिकों के साथ अंग्रेजों की सेना पर टूट पड़ी। रानी ने दुर्ग की दीवार के ऊपर से घोड़े पर चढ़कर छलांग लगाई और लगातार अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए कालपी की और चल पड़ी। कालपी की और घोड़े पर दौड़ते हुए रास्ते में अचानक एक नाला आया। उस नाले को फांदने के कोशिश में घोड़े का संतुलन बिगड़ गया और घोड़ा गिर पड़ा। उसी समय एक अंग्रेज ने रानी के सिर पर प्रहार किया। उनके सिर मैं भयानक चोट आई, फिर भी वह वीरता पूर्वक लड़ती रही। उसके बाद शत्रुओं ने रानी की छाती में भाले से चोट की। घोड़े से गिरने के बाद भी उन्होंने एक अंग्रेज को मार ही डाला।
घायल रानी को उनके सैनिक गंगा दास की झोपड़ी में ले गए। रानी को बहुत चोट आई थी। घायल होने पर भी रानी के मन में जो देश प्रेम की भावना थी, उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। बहुत गंभीर चोटों की वजह से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी इच्छा के अनुसार फौरन उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। वह नहीं चाहती थी कि उनका पवित्र पार्थिव शरीर अंग्रेजों के हाथ में आए।
झांसी की रानी अपने साहस और वीरता के कारण देशवासियों के लिए एक आदर्श बन गई थी। युद्ध भूमि में उन्होंने जो साहस दिखाया आज भी उसकी चर्चा होती है। सभी उनकी वीरता की मिसाल देते हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां आज भी लोग उनकी याद में गाते हैं-
बुन्देले हरबोलों के मुख हमनें सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।
इस तरह क्रांति की ज्योति जलाकर यह वीर नारी हमेशा के लिए अमर हो गई।