बहादुर शाह जफर बाबर द्वारा स्थापित मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। 1837 में तख्तपेशी के समय उन्हें अबू जफर के बदले अबू जफर के मोहम्मद साराजुद्दीन बहादुर शाह गाजी नाम मिला था।
बहादुर शाह जफर का जन्म
बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था. उनका पूरा नाम मिर्ज़ा अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जाफर था. जफर का जन्म भले एक मुगल घराने में हुआ था लेकिन उनकी माँ हिन्दू महिला थी.
बहादुर शाह ज़फ़र का जीवन परिचय ! Bahadur Shah Zafar biography
- बहादुर शाह जफर के वंशज
- बहादुर शाह जफर के बेटे और बेटियां का नाम
- बहादुर शाह जफर के पिता का क्या नाम था?
- बहादुर शाह जफर पत्नी का नाम
पिता (Father) - अकबर द्वितीय
माता (Mother) - लाल बाई
दादा (Grand-father) - आलम अली गौहर बहादुर
दादी (Grand-mother) - नवाब कुदसिया बेगम साहिबा
पत्नी (Wife) - अशरफ महल,बेगम अख्तर महल,बेगम जीनत महल और बेगम ताज महल
भाई (Brother) - सौतेले भई- फरजाना जेब उन-निस्सा,खैर-उन-निस्सा,बीबी फैज़ बक्श और बेगम उम्दा
पुत्र(22) (Son)- मिर्ज़ा मुगल,मिर्ज़ा जवान बख्त,मिर्ज़ा शाह अब्बास,मिर्ज़ा फ़तेह-उल-मुल्क बहादुर बिन बहादुर,मिर्ज़ा खिज्र सुल्तान,मिर्ज़ा दारा बख्तमिर्ज़ा उलुघ ताहिर
पुत्री (32) (Daughters) - बेगम फातिमा सुल्तान,राबेया बेगम,रौनक ज़मानी बेगम,कुलसुम ज़मानी बेग,
ग्रांडसन (Grand-son) - मिर्ज़ा अबू बख्त,जमशीद बख्त
बहादुर शाह जफर का इतिहास
एक शहजादे के रूप में उन्हें उर्दू अरबी, फाराशि भाषा के साथ घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी और बंदूक चलाने की सैनिक शिक्षा मिली थी। वो एक अच्छे निशानेबाज, उम्दा घुड़सवार, सूफी दर्शन के जानकार फारसी विद्वान, सुलेखन मैं देश व शायर थे। निर्वासन के समय उन्होंने जो गजलें वे अपनी संगीतात्मकता और संवेदना के लिए साहित्य में विशेष स्थान रखती है। उन्होंने शराब या तंबाकू का शौकीन नहीं थे, परंतु कई विवाह किए थे। बेगमों, दिसियों, रखैल का पूरा हरम था। इनमें जीनतमहल से उन्होंने ढलती उम्र में विवाह किया था। अंतिम दिनों में वे इनके साथ थी। बहादुरशाह अंग्रेजों को कानून अपनी प्रजा समझते थे, क्योंकि अंग्रेजों ने उनके दादा शाह आलम के साथ स्वामीभक्ति की शपथ ली थी। उधर ईस्ट इंडिया कंपनी उन्हें पेंशनभोगी और स्वयं को उनका मालिक समझते थे।
सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय बहादुर शाह 82 बर्ष के थे। मेरठ से विद्रोही सेना दिल्ली पहुंची और दिल्ली के किले पर अधिकार कर लिया। विद्रोही सेना के नेता थे नानासाहेब पेशवा, तात्या टोपे वह अजीमुल्ला खां। उन्होंने मुगल सम्राट बहादुर शाह से एक बार फिर दिल्ली का तख्त कबूल करने कहा। उनसे सहायता व संरक्षण की मांग की। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों से लड़ने के लिए मेरे पास न तो साधन है, न खजाना और न ही रसद। विद्रोही सेना ने उन्हें दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया।
बहादुर शाह ज़फ़र की गिरफ्तारी ?
सितंबर के अंत में दिल्ली पर पुनः अंग्रेजों का कब्जा हो गया। बहादुरशाह ने हुमायूं के मकबरे में जाकर पनाह ली। बाद में अंग्रेजों के जान बख्श देने के वायदे पर उन्होंने समर्पण कर दिया।मेजर हडसन ने उनके चारों पुत्रों मिर्जा मुगल, मिर्जा खिजर सुल्तान, मिर्जा अबूबकर और मिर्जा अब्दुल्ला को भी कैद कर लिया। जब ये लोग जेल खाने पहुंचे तो बहादुर शाह और उनकी बेगम की पालकी के एक तरफ ले जाया गया और उस चारों शहजादों को एक तरफ ले जाकर पालकी से उतारा गया। शहजादों के हाथ पैर बंधे थे।
मेजर हडसन ने स्वयं चारों शहजादों का सिर काटा और उनका गर्म खून चल्लू से पीकर प्रतिशोध और हिंसा की अग्नि शांति की। क्रूर मजाक करते उन सिरों को थाल में सजाकर बादशाह के पास नजराने के रूप में भिजवा दिया गया। बहादुर शाह अपने बेटे के कटे हुए सिर अपने हाथ में लेकर खून के घूंट पीकर रह गए। फिर होशसंभाल कर बोले, तैमूर की औलाद ऐसे ही सूखेरू होकर बाप के सामने आया करती थी।
उसके बाद शहजादों के धड़ कोतवाली के सामने और कटे हुए सिर जेलखाने के सामने खूनी दरवाजे पर लटका दिया गए।
बहादुर शाह ज़फ़र शायरी इन हिंदी ?
कहां जाता है मेजर हडसन ने अपमान करने के लिए लिहाज से बहादुर शाह जफर से कहा था -
दमदमे में दम नहीं अब खैर मांगी जान की।
अय जफर! दण्डी हुई अब तेग हिंदुस्तान की।
जिनका उत्तर उन्होंने दिया था -गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की।
तख्ते लंदन तक चलेगी लेग हिंदुस्तान की।
बहादुर शाह जफर की मृत्यु कब हुई ?
अंग्रेजों ने उन पर राजद्रोह, विद्रोह और कत्ल के आरोप में सैनिक अदालत द्वारा मुकदमा चलाया। मुकदमे में पेश सबूत अधिकांशतः अप्रासंगिक और कानून अमान्य थे, लेकिन बहादुर शाह को सभी आरोपों मैं दोषी पाया गया और निष्कासित कर दिया गया।
बहादुर शाह के विरुद्ध अंग्रेजों का यह पहला मुकदमा था, जिसमें ब्रिटिश प्रभुत्व को प्रतिष्ठित किया। निरूपाय, अकेले, मित्रविहीन, हतोत्साहित 82 वर्षीय बहादुर शाह जफर पर यह अपमानजनक मुकदमा स्वतंत्रता प्रेमियों के दमन के उद्देश्य से प्रेरित था।
अक्टूबर 1558 में उन्होंने जीवन भर के लिए रंगून निष्कासित कर दिया गया। वहां 6 नंबर 1862 को इस अंतिम मुगल सम्राट ने प्राण त्याग दिया।
बहादुर शाह जफर का स्वतंत्रता संग्राम महान सेनानी ?
बहादुर शाह ज़फर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक महान सेनानी थे जिनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता लेकिन इस वक्त हमारे देश में एक ऐसा भी समूह है जो इतिहास को मिटाने और बदलने के काम में लगा है। कभी गांधी और पंडित नेहरू तो कभी किसी और का गलत ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
हाल ही में एक मित्र से जब मेरी बात हो रही थी तब अचानक 1857 के गदर की बात होने लगी। मेरे उस मित्र ने बहादुर शाह ज़फर के सारे योगदानों को अपने कुछ तर्कों के आधार पर शून्य कर दिया। उनके तर्क ये थे कि बहादुर शाह ज़फर ने इसलिए अंग्रेज़ों से युद्ध किया, क्योंकि अपने राज्य को बचाने के लिए उनके पास कोई और रास्ता नहीं था।
मेरे मित्र ने तमाम तरह की बातें कही। उन्होंने उदहारण पेश करते हुए कहा कि ज़फर खुद एक विदेशी था। वो उस मुगल साम्राज्य का वारिस था जिसने भारतीयों को गुलाम बनाकर अत्याचार किया। उसका वंशज औरंगज़ेब था। ज़फर अगर युद्ध जीत भी जाता तो वो अपनी निरंकुश सत्ता फिर से स्थापित कर लेता। इसी प्रकार से बहादुर शाह ज़फर के बारे में वो तमाम तरह की बातें कहते रहें। मुझे लगा कि 7 नवंबर को उनकी बरसी के मौके पर मैं यह लेख लिखकर लोगों को उनके बारे में बता सकता हूं।
ज़फर का जन्म 24 अक्टूबर, 1775 में हुआ था। उनके पिता अकबर शाह और मां लालबाई थीं। उनकी माँ हिंदू और पिता मुस्लिम थे। वो भारत में ही पैदा हुए थे फिर भी उनकी भारतीयता पर प्रश्न खड़े किए जाते हैं। अपने पिता की मौत के पश्चात अबु ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फर को 18 सितंबर 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया। उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमज़ोर हो गई थी।
एक शासक के तौर पर उनकी सफलता यह थी कि उन्होंने सभी धर्म के लोगों के साथ समान व्यवहार किया। उनके शासन काल के दौरान उन्होंने होली और दिवाली जैसे बड़े हिन्दू त्योहारों को भी दरबार में मनाना शुरू किया। वो हिन्दुओं की भी धार्मिक भावनाओं का बहुत सम्मान करते थे। बादशाह बनने के बाद उन्होंने गौहत्या पर पाबंदी का आदेश दिया।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्राध्यापक डॉ. शैलनाथ चतुर्वेदी के अनुसार 1857 के समय बहादुर शाह ज़फर एक ऐसी बड़ी हस्ती थे, जिनका बादशाह के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी सभी सम्मान करते थे। इसलिए मेरठ से विद्रोह कर जो सैनिक दिल्ली पहुंचे, उन्होंने सबसे पहले बहादुर शाह ज़फर को अपना बादशाह बनाया।
1857 की क्रांति के समय इंडियन रेजिमेंट ने दिल्ली को घेर लिया था और ज़फर को क्रांति का नेता घोषित कर दिया था। उस समय ऐसे माना जा रहा था कि ज़फर देश में हिन्दू-मुस्लिम को ना केवल एक कर देंगे बल्कि, उन्हें भारत के राजा के तौर पर उन्हें एक मत से स्वीकार भी कर लिया जाएगा।
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