मातृभूमि की बलिवेदी में प्रथम आहुति डालने वाले हैं मंगल पांडे। उन्होंने अपने खून से आजादी की सुदृढ़ नींव डाली। मंगल पाण्डे भारतीय क्रांति के अग्रदूत कहे जाते हैं। अंग्रेजों ने जो अमानुषिक अत्याचार किए उनकी कहानी अत्यंत लोमहर्षक है। वस्तुतः गुलामी की विवशता तथा शासकों के अत्याचार ही तो क्रांति की आग जलाते हैं। मंगल पांडे अंग्रेज़ी फ़ौज के एक सिपाही थे-देशभक्त तथा धार्मिक विचारों वाले।
Mangal Pandey Biography in Hindi । मंगल पांडे का इतिहास
मंगल पाण्डे की इसमें सभी टॉपिक कफर किया गया है , आइए जानते हैं .
1/. मंगल पाण्डे का जीवन परिचय
2/. मंगल पांडे का जन्म कहां हुआ था
3/. मंगल पांडे का नारा
4/. बैरकपुर इतिहास
5/. मंगल पांडे को फांसी क्यों दी गई?
6/. मंगल पांडे की मृत्यु कैसे हुई
प्रारंभिक जीवन/ mangal Pandey freedom fighter Life Story
मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे।
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1. पूरा नाम - मंगल पाण्डेय
2. जन्म - 19 जुलाई 1827
3. जन्म स्थान - नगवा, बल्लिया जिला, उत्तर प्रदेश भारत
4. जाति - हिन्दू
5. म्रत्यु - 8 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटकाए गए
( जाने जाते है प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी )
उन दिनों अंग्रेज़ अपने कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी और उनके खून का प्रयोग करते थे, जिन्हें सिपाई दांतों से खोलते थे। हिंदुओं के लिए जिस प्रकार गाय का मांस खाना पाप माना जाता है, उसी प्रकार मुसलमानों के लिए सूअर का मांस खाना मना है। जब फौजी के हिंदू, और मुसलमान सिपाहियों के कानों में यह बात पहुंची तो वे भड़क उठे। उस समय अंग्रेज़ फ़ौजी अधिकारियों ने झूठ बोल कर सिपाहियों को शांत करना चाह तथा उन्हें विश्वास दिलाना चाहा कि बंदूक को करतूसों मैं गाय अथवा सूअर की चर्बी इस्तेमाल नहीं की जाती । इतने पर भी सैनिकों को गौ-मांस भक्षी अंग्रेजों पर विश्वास नहीं हुआ। विद्रोह तथा असन्तोष की भावना उनके दिलों में पलती तथा बढ़ती रही। इस प्रकार क्रांति पैदा करने वाले अन्य सैकड़ों आर्थिक, समाजिक तथा राजनीतिक कारणों में यह एक धार्मिक कारण भी जुड़ गया तथा इन सब कारणों ने मिलकर फिरंगियों के प्रति घृणा, विद्वेस तथा असन्तोष की आग भड़का दी।
इस असन्तोष के कारण मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों पर पहली गोली चला कर स्वतंत्रता-संग्राम छेर दिया। मंगल पांडे परम्परानिष्ठ ब्राह्मण थे ही, वे देश भक्त भी थे। इस समय को क्रांतिकारियों ने यह तो भारत भर में एक साथ तथा एक ही दिन विद्रोह करने की तारीख 31 मई निश्चित की थी, किन्तु यह तारीख अभी दूर थी तथा लोगों का असन्तोष इतने दिन तक रुका नहीं रह सकता था। आग का धर्म जलाना है तो असन्तोष का धर्म भड़कना है। उसे बाधकर नहीं रखा जा सकता। मंगल पांडे का असन्तोष फूट पड़ा और उनकी बंदूक की गोली छूट पड़ी। उन्होंने परिणामों की चिन्ता नहीं की।
मंगल पाण्डे बैरकपुर की 19 नवंबर रेजीमेंट के एक भावुक तथा जोशीले सिपाही थे। अंग्रेजों ने गलती से उस रेजीमेंट मैं वे कारतूस दिए, जिनमें चर्बी लगे होने का सन्देह था। जब सिपाहियों ने उन कारतूसों को हाथ से छूने तक से इंकार कर दिया तो अधिकारियों ने इससे आज्ञा का उल्लंघन समझा। भावी आशंका के भय से उन्होंने हुक्म दिया कि 19 नवंबर रेजीमेंट के सभी हथियार छीन लिए जाएं। सिपाहियों ने अपने को अपमानित महसूस किया। मंगल पाण्डे इस प्रकार के किसी भी अपमान को सहन करने के लिए तैयार न थे। यह बात विद्रोह के लिए निश्चित की गई 21 मई की तारीख से कई मास पहले की है। मंगल पांडे ने सोचा, जब विद्रोह ही करना है, तब इतनी देर क्यों? और उन्होंने अपने तरफ से विद्रोह का बिगुल बजा दिया। उन्होंने जब अपने मुखिया बाजीराव अली ख़ां के परवाह नहीं की, जिनके नेतृत्व में पहले ही से बैरकपुर की रेजीमेन्ट विद्रोह में भाग लेने की शपथ ले चुकी थी।
मंगल पाण्डे को जब यह निश्चय हो गया कि उनकी कुल रेजीमेन्ट को निरस्त्र कर दिया जाएगा तथा उन्हें दबाने के लिए बर्मा से गौरी पलटन बुलाई जा रही है और बहुत सी तैयारियों की जा रही है, तो उन्होंने सोचा अब देर करना ठीक नहीं । निर्दिष्ट तारीख तक शायद उनकी रेजीमेन्ट ही ना रहे। यह सोच कर मंगल पाण्डे ने अपनी बंदूक उठा ली। उसमें गोली भर ली और फिर वह उस मैदान में अकेले ही गए, जहां फौजी परेड हुआ करती थी। उन्होंने बैरक के अपने अन्य साथियों को अपने साथ चलने के लिए कहा, तो कोई राजी न हुआ। मंगल पाण्डे ने इसकी भी चिंता नहीं की।
उन्होंने एक बार पुनः अपने साथी सिपाहियों को अपने साथ ले चलने का प्रयत्न किया और चिल्ला कर बोले, भाइयों उठो आप पीछे क्यों हट रहे हो ? आओ और अपने शस्त्र उठाओ, मैं आप लोगों को धर्म की सौगन्ध दिलाता हूं। स्वतंत्रता की देवी तुम्हें पुकार रही है और कह रही है कि तुम्हें धोखा बाज तथा मक्कार शत्रुओं पर फौरन आक्रमण बोल देना चाहिए। अव और रुकने की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार मंगल पाण्डे ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। उनके साथी सिपाही उनकी तमाम हरकतें को देखते रहे, किन्तु बोले कुछ भी नहीं। वे एक दूसरे का मुंह ही ताकते रहे। इस समय दो बातें उनके आड़े आ रही थी। एक तो फौजी अनुशासन तथा दूसरे क्रांतिकारी नेताओं का यह अनुशासन भी कि अमुक तारीख को ही सामूहिक रूप से विद्रोह किया जाना चाहिए। इतने में अंग्रेज़ सार्जेन्ट मेजर ह्यूसन मंगल पाण्डे को बन्दूक लिए आजादी से घूमते देखा तो वह घबरा गया। उससे स्वयं कुछ करते न बना उसने अपने सिपाहियों को हुक्म दिया ,मंगल पाण्डे को गिरफ्तार कर लो।
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मंगल पांडे का इतिहास |
परन्तु मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने के लिए कोई भी आगे न बढ़ा। वे तारीख से पहले विद्रोह करना नहीं चाहते थे। यह ठीक था, किन्तु उनकी सहानुभूति मंगल पाण्डे के साथ अवश्य थी। सबके लिए यह समय बहुत नाजुक था, मंगल पाण्डे के हाथ में भरी हुई बन्दूक थी। उनकी आंखें शोले उगल रही थी और उनकी आत्मा रक्तदान के लिए तड़प रही थी। उनके साथी किंकर्तव्यविमूढ़ बने खड़े थे। उधर वह गोरा सार्जेण्ट मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का आदेश दे रहा था। इसी समय "ठांय" की आवाज हुई और वह गोरा भूमि पर लौट गया। एक दूसरे अंग्रेज़ अफसर लेफ्टीनेंट बाब इसी वक्त घटनास्थल पर आ उपस्थित हुआ। वह घोड़े पर सवार था। तत्क्षण गोली की एक और आवाज हुई और घोड़ा और सवार दोनों धराशाई हो गए। लेकिन यह गोली घोड़े को लगी थी। फलत: वह अंग्रेज़ शीघ्र ही उठ बैठा। उसने अपनी पिस्तौल निकालकर मंगल पाण्डे पर गोली चलाई, पर उसका निशाना चूक गया।
मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली। यह देख उस गोरे ने भी तलवार निकाल ली। गोरा अभी मंगल पाण्डे पर वार नहीं कर पाया था कि मंगल पाण्डे ने उसका काम तमाम कर दिया। इतना बड़ा काण्ड एक क्षण में आंख क्षपकाते- क्षपकाते हो गया। इसी समय एक गोरा और आ गया। आते ही उसने मंगल पाण्डे पर आक्रमण कर दिया। अब भारत सिपाही खड़े खड़े यह काण्ड नहीं देख सके। एक सिपाही तत्क्षण आगे बढ़ गया। उसने ऐसा जोर से अपनी बन्दूक का कुन्दा उस आक्रमणकारी गोरे के सिर पर मारा कि उसका सिर फट गया। इस समय मंगल पाण्डे की आंखों से क्रांति की ज्वालाएं बरस रही थी। अब विद्रोह केवल मंगल पाण्डे तक ही सीमित नहीं रह सका। भारतीय सिपाहियों में से किसी ने चिल्ला कर कहा "खबरदार" मंगल पाण्डे को कोई हाथ न लगाये।
इस विद्रोह की खबर पाकर फौज का गोरा बड़ा अफसर कर्नल व्हीलर घटना स्थल पर फोरन दौड़ा आया । उसने स्वयं तो कुछ नहीं किया, किंतु सिपाहियों को आज्ञा दी कि पांडे को पकड़ लिया जाए। उसी समय भीड़ में से यह आवाज आई -हम ब्राह्मण देवता का बाल भी बांका न होने देंगे। जब उसने देखा कि अंग्रेजों की लाशें पड़ी है तथा मंगल पांडे रक्त में नहाया खड़ा है, तब वह चुपचाप अपने बंगले लौट गया। मंगल पांडे अव हाथ फटकारते हुए कह रहे थे, भाइयों बगावत करो, बगावत करो। अपडेट करना उचित नहीं। देश को तुम्हारा बलिदान चाहिए। पर सिपाही किसी झिझक के कारण अब भी आगे नहीं बढ़ रहे थे।
अव जनरल सियरे अंग्रेज सेना के साथ आया। मंगल पांडे ने देखा कि उनसे लड़ने के लिए गौरी पलटन की एक टुकड़ी ही आ पहुंची है तथा भारतीय सिपाही आगे नहीं आ रहे हैं। उन्होंने स्पष्टत: यह समझ लिया कि उन्होंने अब अवश्य ही पकड़ लिया जाएगा। फलत: उन्होंने अपने बंदूक अपने सीने की और रानी तथा घोड़ा दबा दिया। वह नहीं चाहते थे कि अंग्रेज उन्हें जिंदा पकड़ कर उनकी दुर्गति करें।
दुर्भाग्य की बात यह है की उनकी गोली ने भी उस समय उनका पूरा साथ नहीं दिया। गोली ने उनके सीने में घाव अवश्य कर दिया, जिसमें पहले से ही अनेक घाव थे। मंगल पांडे जब अपने ही गोली खाकर जमीन पर गिर पड़े, तब फिर उस अफसर ने उन्हें जान उसे नहीं मारा। उन्हें उठा कर फौजी अस्पताल ले जाया गया।
मंगल पांडे अपने गोली से मारे नहीं। वे घायल अवश्य हो गए थे। थोंड़े दिनों के उपचार से वे ठीक भी हो गए। अब उन पर फौजी अनुशासन भंग करने तथा हत्या करने का मुकदमा चलाया गया। उनसे पूछा गया कि तुम्हारे और साथी कौन-कौन है ? उन्होंने किसी भी साथी का नाम बताने से इंकार कर दिया। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि "जिन अंग्रेजों पर उन्होंने गोली चलाई उनसे उनका कोई बेर नहीं था। झगड़ा व्यक्तियों का नहीं, दो देशों का है। हम नहीं चाहते कि दूसरे के गुलाम बन कर रहे। फिरंगियों को हम अपने देश से निकाल देना चाहते हैं।
8 अप्रैल 1957 को मंगल पांडेय को फांसी देने के लिए- कोई व्यक्ति नहीं मिला। कलकत्ता से तब चार जल्लादों को लाया गया। जो यह ना जानते थे कि वे किसे फांसी देंगे। उस दिन से अंग्रेज हर बागी सिपाहियों को मंगल पांडे के नाम से पुकारने लगे। उनके निकट पांडे शब्द बागी का अर्थसूचक बन गया। और अंग्रेज हर पांडे से भय खाने लगे। परंतु मंगल पांडे भारतीयों को श्रद्धाप्राप्त हुतात्मा बन कर भारत का इतिहास में प्रतिष्ठित हो गए।